Tuesday, September 7, 2010

दुर

बहुत दुर था वो मुझसे
फिर भी आश रहती है
वो है यहीं आस पास मेरे
पर खुदा को यह रास न आया
मेरा खुशियां
मेरी हंसी
पता नहीं उसे क्यों न रास आया
वो अब इस जहां में नहीं
वो आश
वो उम्मीदें
चला गया उसके साथ
सब कहते है खुदा बुरा नहीं करता
जो उसने किया वो क्या है
दिल अब नहीं मानता खुदा भी कोई है
ये तो एक अल्फाज है
जिसे हमने एक नाम दे दिया
इसके अलावा वो कुछ भी नहीं
पत्थर की मुरत भी रो पड़ती है
किसी को तड़पता देख
किसी के प्यार में किसी को मरता देख
पर यह खुबी इस खुदा में नहीं..............

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