विश्वास मुठी मे रेत की तरह
हाथो से जाता रहा और
मै बस देखती रही
देखती रही उसके बदलते रूप को
इतना भयावह
की रूह तक कॉप गया
उसके चहेरे से उतरते उस मुखोटे की
मेरे लिए जोः अनजान था
Kaun Kahta Haio ki Tu Insan Hai
ReplyDeleteTujhme Bhi Baste Bhagwan Hai....
Bahut Sunder..Aise Hi Likhte Raho
achcha laga
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