Friday, December 4, 2009


क्या है तेरे मेरे बिच
न चाहकर भी सोचने पर मजबूर हु
रस्मियो की तरह खामखा
जलने की लालसा लिये
ये सोचने पर मजबूर हु
क्या है तुम्हारा मेरा रिश्ता
न कहकर भी ख़ुद से ये प्रश्न करना
और ये सोचने पर मजबूर हु
आख़िर क्यो खामखा बर्बाद होने की लालसा मेरी है
क्या है तुम्हारे मेरे बिच
जो ये सब सोचने पर इतनी मजबूर हु
मे जानती हु की
इन सब के बाद
मे,मे नही रहूगी
मुझ पर न जाने कितनी अगुलिया उठेगी
वो अंगुलिया किसी और की नही
मेरे अपनों की होगी
और में चुपचाप निरुतर खामोश
दीवारों को देखती रहूगी
मेंजानती हु
तुम्हारा कुछ नही जाएगा
तुम तो वो भवरा हो
जो कभी यहाँ तो कभी वहा
में क्यो सोच रही ये सब
क्या है तुम्हारे मेरे बिच
क्यो समझ नही आया
दिन और रात का अंतर
क्यो भटक के रह गई
इन अंधेरी गलियो में
क्यो दुसरेकी लगाई आग में
ख़ुद को तबाह कर आई में
सिर्फ़ एक सवाल ने
क्या है तुम्हारे मेरे बिच .

1 comment:

  1. Tere Shaher Se Begana Ho k Aaya Hoon ..Ji Chahta Hai Aag Laga Do Jahan Ko ..

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